इप्टा के राष्ट्रीय सम्मेलन में वैज्ञानिक चेतना से लेकर खेती किसानी संकट तक पर विशेषज्ञों ने रखी अपनी राय

इप्टा के राष्ट्रीय सम्मेलन में वैज्ञानिक चेतना से लेकर खेती किसानी संकट तक पर विशेषज्ञों ने रखी अपनी राय


-- अरूण कुमार सिंह

पलामू । मेदिनीनगर के टाउन हॉल में इप्टा के 15वें राष्ट्रीय सम्मेलन के दूसरे दिन की शुरुआत 'समकालीन परिदृश्य: मुद्दे और रचनाकर्म' विषय पर चर्चा के साथ हुई। इसके तहत वैज्ञानिक चेतना और तर्क, खेती किसानी संकट, सामाजिक न्याय, आर्थिक असमानता एवं साम्प्रदायिकता, पर्यावरण, जेंडर के सवाल पर कार्यशाला आयोजित की गई। अलग-अलग समूहों में समानांतर रूप से आयोजित की गई कार्यशाला में संबंधित विषय के जानकार और विशेषज्ञ शामिल हुए जिन्होंने अपनी बात रखी ।

वैज्ञानिक चेतना और तर्क पर बात की गौहर रजा और अमिताभ पांडेय ने

वैज्ञानिक चेतना और तर्क पर बात करने के लिए मशहूर लेखक व विज्ञानविद गौहर रजा और वैज्ञानिक अमिताभ पांडे थे। इस समूह में प्रतिभागियों के साथ सवाल-जबाव के साथ कार्यशाला की शुरुआत हुई। पहला सवाल यही था कि विज्ञान क्या है? विज्ञान और तकनीकी में क्या अंतर है? इन सवालों का जवाब देते हुए गौहर रजा और अमिताभ ने बताया कि हम विज्ञान को तकनीक से जोड़ देते हैं यह एक बड़ी समस्या है। तकनीक से हम काम लेते हैं जबकि विज्ञान आपको समझदार बनाता है। विज्ञान तर्कशील बनाता है और सवाल पैदा करता है। यही अंतर धर्म और विज्ञान में है। जब आप कैसे का सवाल खड़ा करते हैं, किसी भी बात को लेकर कैसे का सवाल खड़ा होता है, तो वहां विज्ञान के माध्यम से तर्कसंगत व तथ्यात्मक जवाब मिलता है और जब क्यों का सवाल आता है तो फिर उसका जवाब घुमा फिरा कर आता है और ईश्वर से जोड़ दिया जाता है।

जेंडर से जुड़े विषय पर नसीरुद्दीन और कबीर बोले

जेंडर विषय पर आयोजित कार्यशाला में नसरुद्दीन और कबीर के संचालन में पहले प्रतिभागियों को सवाल देकर उन्हीं से जवाब मांगे गए। इस प्रक्रिया में महिलाओं की समाज में क्या स्थिति है और प्रतिभागी उनके बारे में क्या सोच रहे हैं ? उनका पेशा डॉक्टर, नर्स, मजदूर, किसान आदि क्षेत्र में कैसा है ? उनका व्यवहार क्या है और उनके प्रति जो समाज की सोच का बना बनाया ढांचा है, उसको कैसे परिवर्तित किया जाए ? उसमें कैसे बदलाव लाया जाए जैसे मुद्दों पर बातचीत की गई। आखिर में इन सब सवालों और जवाबों को लेकर नाटक और गीतों के माध्यम से बदलाव लाने की जरूरत पर बल देते हुए प्रतिभागियों को इस पर काम करने के लिए प्रेरित किया गया।

मीनाक्षी के नेतृत्व में पर्यावरण पर हुई कार्यशाला

प्रोफेसर मीनाक्षी पाहवा के नेतृत्व में पर्यावरण विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। पर्यावरण को बृहद परिपेक्ष्य में समझने की जरूरत पर बल देते हुए कहा गया कि हमारी कला में पर्यावरण एक अछूता सा विषय रह गया है। जिस पर इप्टा के साथियों को काम करने जरूरत है। हमें अपने आदिवासी भाइयों से सीखना चाहिए क्योंकि पर्यावरण संरक्षण के वही असली हकदार हैं।

आर्थिक असमानता और सांप्रदायिकता के मुद्दे पर भी हुई कार्यशाला

आर्थिक असमानता और सांप्रदायिकता के मुद्दे पर वर्कशॉप आयोजित की गई इस वर्कशॉप के के कोऑर्डिनेटर ईश्वर सिंह दोस्त और सचिन श्रीवास्तव थे। इस दौरान बातचीत में तीन नाटकों को तैयार करने पर सहमति बनी। तीन नाटकों की थीम इस तरह है। एक भारतीय शैक्षणिक संस्थानों और आधुनिक संस्थानों में सोशल जस्टिस, दूसरी थीम सोशल मीडिया पर फैलती अफवाहें और हमारा समाज, तीसरी थीम संगीत और भारत की मिली-जुली संस्कृति है । इन तीन मुद्दों पर तीन अलग-अलग ग्रुप में बातचीत हुई और उसमें यह तय किया गया कि अगले 2 महीनों में इन पर नाटक लिखा जाएगा। बातचीत के दौरान ईश्वर सिंह दोस्त ने कहा कि सामाजिक न्याय की अवधारणा हमारे सामाजिक सिस्टम के साथ जाति और धर्म से जुड़ती है। यह जेंडर और वैज्ञानिकता की परिभाषा को भी जोड़ती है। सामाजिक न्याय की अवधारणा को समझने और भारतीय समाज के संदर्भ में इसके व्यापक संदर्भों को जानने के लिए हमें गांधी, कबीर, टैगोर और रैदास तक जाना होगा। गांधी जिस हिंसा की बात करते हैं उसमें कमजोर के प्रति हिंसा वायलेंस है, लेकिन वही जब ताकतवर के खिलाफ होती है तो वह हमारा अधिकार होती है और हौसले को बताती है। इस तरह से कई मुद्दों पर बातचीत के दौरान सोशल मीडिया के और सभी ने अपने अपने व्यक्तिगत अनुभवों के जरिए विभिन्न कहानियों को आगे बढ़ाया । आने वाले 2 महीनों में इन पर नाटक तैयार होंगे।

अलग-अलग आयोजित कार्यशालाओं को समेकित करते हुए तमाम रंगकर्मियों को अपने नाटक, गीत एवं चित्र सहित अन्य कला विधाओं के केंद्र में वैज्ञानिक चेतना और तर्क के साथ खेती किसानी के संकट, जेंडर के सवाल, पर्यावरण के सवाल एवं सामाजिक न्याय आर्थिक असमानता और सांप्रदायिकता को समाहित करने के लिए प्रेरित किया गया। वहीं शाम 6:00 बजे से नीलांबर पितांबर लोक महोत्सव के तहत विभिन्न राज्यों की इकाईयों द्वारा अपनी कलात्मक प्रस्तुतियां प्रस्तुत की गयीं ।