इप्टा के 15 वें राष्ट्रीय सम्मेलन में विचार से लेकर गीतों तक ने वर्तमान दौर की जरूरत से लेकर प्रेम की आवाज को बुलंद किया

इप्टा के 15 वें राष्ट्रीय सम्मेलन में विचार से लेकर गीतों तक ने वर्तमान दौर की जरूरत से लेकर प्रेम की आवाज को बुलंद किया


-- अरूण कुमार सिंह

इप्टा के 15वें राष्ट्रीय सम्मेलन के पहले दिन नीलाम्बर पिताम्बार लोक महोत्सव के अंतर्गत सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया। सांस्कृतिक संध्या का आगाज झारखंड के आदिवासी कलाकारों द्वारा नगाड़ा वादन के साथ हुई। इसके बाद बिहार इप्टा के कलाकारों ने लक्ष्मी प्रसाद यादव के नेतृत्व में 'अइले नगाड़ा लेके इप्टा मैदान में' जनगीत प्रस्तुत किया । छत्तीसगढ़  इप्टा के साथियों ने मणिमय मुखर्जी के नेतृत्व में सलिल चौधरी की धुन पर जनगीतों की प्रस्तुति दी। झारखण्ड के कलाकारों ने पाईका लोकनृत्य की शानदार प्रस्तुति दी।

मीर मुख्तियार अली ने सूफी गायन से नफ़रत के खिलाफ़ प्रेम की अलख जगायी

बिहार इप्टा के कलाकारों ने श्वेता भरती के नृत्य संयोजन में झिझिया लोकनृत्य की मनभावन प्रस्तुति दी। उड़ीसा इप्टा ने उडसी नृत्य की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम के आखिर में अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त सूफी गायक मीर मुख्तियार अली ने अपने सूफी गायन से समा बांधा। उन्होंने नफ़रत के खिलाफ़ प्रेम की अलख जगाते हुए अमीर खुसरो, कबीर, गुलाम फ़रीद, बुल्लेशाह जैसे प्रेम और सद्भाव को तरजीह देने वाले सूफियों के कलाम को प्रस्तुत किया। सांस्कृतिक संध्या के दौरान शिवाजी मैदान में हजारों की तादाद में दर्शक मौजूद रहे। आयोजन समिति ने बताया कि सम्मेलन के दौरान प्रतिदिन सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया जायेगा ।

बीते 17 मार्च को 15 नगाड़ों की थाप, रंग जुलूस और सांस्कृतिक एकता के संदेश के साथ शुरू हुआ था इप्टा का राष्ट्रीय सम्मेलन

17 मार्च शुक्रवार को स्थानीय शिवाजी मैदान में 15 नगाड़ों की थाप के साथ भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) का 15वां राष्ट्रीय सम्मेलन शुरू हुआ। उद्घाटन समारोह में अपने आरंभिक वक्तव्य में इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और वरिष्ठ रंगकर्मी, एक्टिविस्ट प्रसन्ना ने कहा कि आज हम संकट के समय में मिले हैं, जब गरीब और गरीब और अमीर और ज्यादा अमीर हो रहे हैं। आज काम से हाथ से, कला का रिश्ता टूट गया है। हमारा काम ही हमारा भगवान है। मंदिर, मस्जिद, चर्च बनने से ईश्वर, या खुदा, या गॉड से नहीं रिश्ता बनाया जा सकता है, बल्कि काम के जरिए ही ईश्वर से रिश्ता बनता है। यही संतत्व है। संत रविदास को याद करते हुए उन्होंने कहा कि अपनी मिट्टी से रिश्ता ही ईश्वर से रिश्ता है।

उद्घाटन सत्र में वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी और गजलकार गौहर रजा ने "सच जिंदा है" नज़्म से अपनी बात शुरू की। उन्होंने कहा कि आज के दौर में सच को कहना बेहद जरूरी है, अपनी आवाज उठाना जरूरी है। आज ये दौर जो शुरू हुआ जो हमारा देश का ढांचा जो 70 साल में बना वो टूट जाए। न्यायालय, शिक्षा, मीडिया समेत अन्य सभी क्षेत्र में जिस तरह के काम हो रहे है। वो सवाल सामने आ गया कि गरीब का बेटा पढ़ भी सकेगा।

कार्यक्रम में देश के विभिन्न हिस्सों से अतिथियों ने आकर कार्यक्रम की शुरुआत में हिस्सेदारी की। इनमें सुखदेव सिंह सिरसा (पंजाब), राकेश वेदा (उत्तरप्रदेश), एन बालाचंद्रन (केरल), हिमांशु राय (मध्य प्रदेश), मधु मंसूरी (झारखंड), मिथलेश और रनेंद्र (झारखंड), वेदा राकेश (उत्तरप्रदेश), राजेश श्रीवास्तव ( झारखंड), तनवीर अख्तर (बिहार), ऊषा आठले (महाराष्ट्र) आदि शामिल थे। इस कार्यक्रम का संचालन इप्टा के राष्ट्रीय सह सचिव शेलेंद्र कुमार ने किया।

इसके पहले शहर की सड़कों पर 600 से ज्यादा कलाकारों ने रंग जुलूस निकाला। एकता, समता, शांती, सद्भाव और भाईचारे का संदेश देते हुए शहर में भारत के विभिन्न राज्यों से इप्टा के राष्ट्रीय सम्मेलन में पहुंचे सैकड़ों की संख्या में इप्टा के कलाकारों ने सांस्कृतिक रैली निकालकर भारत की मिलीजुली साझी संस्कृति की झांकी प्रस्तुत की। शहर वासियों को अभिभूत करने वाले इस अभूतपूर्व दृश्य में नगाड़ों  की गूंज, मादर-ढोलक की थाप के साथ ही बैंड की धुन पर थिरकते कलाकार, लोकनृत्य, लोकगीत, जनगीत गाते समूह, लहराते झंडे और मनुष्यता की आवाज बुलंद करते बैनरों को थामे संस्कृतिकर्मी। इस सांस्कृतिक रैली में भारत के उत्तर से लेकर दक्षिण तक की संस्कृति का नजारा देखने को मिला। शहर के इतिहास में पहली बार लोकरंग यात्रा का विशाल स्वरूप देखने को मिला।

रंग जुलूस के पूर्व सुबह 9 बजे झंडात्तोलन से कार्यक्रम की शुरुआत हुई। इसके बाद इप्टा के विभिन्न समूहों ने जनगीतों की प्रस्तुति दी। इसके बाद शहीदों को श्रद्धांजलि दी गई। संगठन सत्र में राष्ट्रीय महासचिव राकेश ने संगठन की रिपोर्ट प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि इप्टा की शानदार विरासत को याद करना जरूरी है, लेकिन आज के हालात से भी आंख मिलाना जरूरी है। भाभा, ख्वाजा अहमद, चित्तो प्रसाद के साथ हजारों नाम हैं, जिन पर हम गर्व कर सकते हैं। लेकिन आज के हालात में अपनी ताकत और जनता से रिश्ते को परखना भी जरूरी है । इस सत्र में बिहार इप्टा के फिरोज अशरफ खान ने राष्ट्रीय परिदृश्य पर महासचिव की बात को रखा और महाराष्ट्र इप्टा की वरिष्ठ साथी ऊषा आठले ने संगठन के कार्यों का ब्यौरा प्रस्तुत किया।