"भाषा के आधार पर हम राज्य के छात्रों का अधिकार नहीं छीन सकते ‌और मगही-भोजपुरी को डोमिनेटिंग भाषा कहना गलत" : त्रिपाठी

"भाषा के आधार पर हम राज्य के छात्रों का अधिकार नहीं छीन सकते ‌और मगही-भोजपुरी को डोमिनेटिंग भाषा कहना गलत" : त्रिपाठी


-- समाचार डेस्क
-- 14 सितंबर 2021

जेएसएससी की परीक्षा के लिए द्वितीय पत्र में क्षेत्रीय भाषाओं को शामिल करने के मसले पर पूर्व मंत्री और इंटक के राष्ट्रीय अध्यक्ष केएन त्रिपाठी ने राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा सोशल मीडिया पर भाषा विवाद पर दिए गए एक इंटरव्यू पर सख्त एतराज जताया है । श्री त्रिपाठी ने सीएम के इंटरव्यू में दिए गए बयान और उनसे हुई बातचीत के आधार यह उनका यह बयान परस्पर विरोधी है । उनका यह बयान गैरसंवैधानिक है‌।‌इसे विधि सम्मत नहीं कहा जा सकता और यह सीएम की मर्यादा के प्रतिकूल है । उन्होंने कहा कि सीएम ने अपने इंटरव्यू में कहा है कि मगही-भोजपुरी, अंगिका-मैथिली बिहार की भाषा है । यह झारखंड की भाषा नहीं है । सीएम ने ये भी कहा कि ये डोमिनेटिंग भाषा है ।

श्री त्रिपाठी ने सीएम के कथन का विरोध करते हुए कहा कि देश में कमोबेश सभी भाषाओं में गालियां दी जाती हैं,  तो क्या इससे राष्ट्रीय या क्षेत्रीय भाषा का दर्जा छीन लिया जाएगा ? सीएम ने माना कि भोजपुरी, मगही, अंगिका और मैथिली बिहार की भाषा है, तो बंगला और उड़िया भी ओड़िशा और बंगाल की भाषा है । फिर इस आधार पर भाषा का मानक कैसे तय किया जा सकता है‌ ?

'भाषा के आधार पर छात्रों का अधिकार नहीं छीनें'

श्री त्रिपाठी ने कहा कि कि झारखंड राज्य का निर्माण भाषा के आधार पर नहीं हुआ है । झारखंड का निर्माण दक्षिण बिहार इलाके के अतिपिछड़ेपन को दूर करने के मकसद से किया गया है । झारखंड में अगर विभिन्न जातियों और विभिन्न धर्मों के लोग निवास करते हैं तो उनकी भाषाएं भी एक नहीं हो सकतीं । हमारे राज्य में संतालपरगना में संताली अलावा देवघर-गोड्डा में अंगिका और मैथिली बोली जाती है ।‌यदि कोल्हान के चाईबासा में मुंडारी और हो बोली जाती है, तो जमशेदपुर में मगही और भोजपुरी बोली जाती है । वहीं बोकारो, धनबाद, गिरिडीह के ग्रामीण इलाकों में खोरठा तो शहरी इलाकों में भोजपुरी और मगही बोली जाती है, तो शहरी इलाकों में भोजपुरी और मगही भी बोली जाती है । पलामू, लातेहार. गढ़वा और चतरा में पूर्णतः मगही बोली जाती है, ये सारे जिले झारखंड के ही भाग हैं । इनके मुख्यमंत्री भी हेमंत सोरेन ही हैं ।

उन्होंने कहा कि सीएम हर जाति-धर्म-संप्रदाय के होते हैं तो हमें उनकी भाषाओं का भी सम्मान करना होगा । इसे अलग नजरिये से नहीं देखा जा सकता । भाषा के आधार पर हम राज्य के छात्रों का अधिकार नहीं छीन सकते । उन्होंने सीएम से मांग की है कि राज्यहित में अपने वक्तव्यों पर पुनर्विचार करें ।

2013-14 में भी हुआ था भाषा विवाद

उल्लेखनीय है कि 2013-14 में हेमंत सरकार में मंत्री रहे केएन त्रिपाठी से भाषा विवाद पर राज्य की तत्कालीन शिक्षा मंत्री से मगही-भोजपुरी भाषा को लेकर मतभेद हुए थे । उस समय झारखंड कांग्रेस के प्रभारी रहे बीके हरिप्रसाद और पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी के निर्देश पर झारखंड कांग्रेस मुख्यालय में दिनभर बैठक चली थी । बैठक में यह भाषा विवाद पर विराम लगाते हुए मगही और भोजपुरी भाषाओं को परीक्षाओं में शामिल करने का फैसला हुआ था । उन्हें यह याद रखना चाहिए, क्योंकि उस समय भी सीएम हेमंत सोरेन ही थे ।

सीएम ने त्रिपाठी को दिया है आश्वासन

बता दें कि केएन त्रिपाठी ने जेएसएससी की परीक्षा के लिए द्वितीय पत्र में मगही, भोजपुरी, अंगिका और मैथिली भाषाओं का नाम हटाने पर आपत्ति जता चुके हैं ।‌ इस संबंध में वे कुछ दिन पहले मीडिया के समक्ष कहा था कि इन भाषाओं को भी जोड़ने पर सीएम ने सहमति जतायी है । इस मामले में उन्होंने झारखंड कांग्रेस के प्रभारी आरपीएन सिंह, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से बातचीत की है । सीएम ने कहा है कि दुर्गापूजा के बाद इन भाषाओं को भी शामिल कर लिया जाएगा । फिर इस तरह अपने वक्तव्य को बदलना राज्य के लिए शुभ संकेत नहीं माना जा सकता ।