कोरोना काल में मजदूरों, किसानों और निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों का हाल- "छूंछा रे छूंछा, तोरा के पूछा ?"

कोरोना काल में मजदूरों, किसानों और निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों का हाल- "छूंछा रे छूंछा, तोरा के पूछा ?"

"जीवित रहने की मांगें और शर्तें तो मार ही डालेगीं न साहेब... ?"

-- अरूण कुमार सिंह
-- 8 जून 2021

मनातू के एक गांव के पूरन सिंह एक कहानी सुनाते हैं कि एक बच्चा अपने पिता से लगातार बढ़िया खाना और किताबों की मांग कर रहा था । पिता बच्चे की मांग पूरी करने में सक्षम नहीं था । बच्चे की मांग जब लगातार तीव्र होती गयी तो गुस्से में आकर पिता ने एक दिन बच्चे को एक गड्ढे में गिरा दिया ‌। गड्ढे से बाहर निकलने की बेचैनी में बच्चे ने पिता से वायदा किया कि अब वह जीवन भर अपनी तकलीफों को लेकर मुंह नहीं खोलेगा । पिता की इच्छा पूरी हुई । कुछ ऐसी ही स्थिति कोरोना महामारी संकट काल में उन हजारों परिवारों, बेकार पड़े मजदूरों, कलाकारों, कामगारों, छात्रों और अन्य पेशे से जुड़े लोगों की है जिन्हें अब तक न तो कोरोना मार पाया और न ही शासन इन्हें ठीक से जिंदा रहने में मदद कर पा रही है । ऐसे लाखों लोग हैं जिनकी समस्यायें कोरोना की चर्चा के बीच लगभग गायब हो चुकी हैं । अब जबकि कोरोना की दूसरी लहर लगातार ढल रही है, तब भी अधिकारी और सरकारी बाबू रोजी-रोजगार और विकास के अन्य संसाधनों की बात न करके सिर्फ और सिर्फ कोरोना की माला जप रहे हैं तो लाखों लोगों के लिए यह समझना मुश्किल हो रहा है कि आखिर जियें तो जियें कैसे ?

जिले भर में करीब 7 लाख आबादी के पास कोई काम नहीं

पलामू की जनसंख्या (पुराने सरकारी आंकड़ों की बात छोड़ दें तो) लगभग 25 लाख से अधिक है । इनमें करीब 8 लाख लोग दिहाड़ी मजदूर या ऐसे व्यवसायी हैं जो हर दिन कमाते हैं, तब उन्हें दो जून की रोटी नसीब होती है । लॉक डाउन के बाद इनमें करीब 6 लाख लोग पूरी तरह बेरोजगार हो गये हैं । इस मुश्किल वक्त में आखिर ये किस तरह से जीवित होंगे, यह जानने की जरूरत तक सरकार या उसके महकमे के लोगों को अभी तक नहीं हुई ।

मनरेगा जमीनी कम कागजी अधिक, मनरेगा से नहीं मिल पा रहा लोगों को रोजगार

पलामू जिले में 3 लाख 60 हजार 69 जॉब कार्डघारी हैं । इनमें 2 लाख 41 हजार 141 एक्टिव जॉब कार्डधारी हैं । 3 लाख 14 हजार 391 सक्रिय मजदूर हैं । इनमें सक्रिय महिला मजदूरों की संख्या 1 लाख 30 हजार 295 है । अप्रैल में जहां 10 लाख 64 हजार 179 मानव दिवस सृजित किये गये, वहीं मई में कुल 7,16,920 मानव दिवस ही सृजित किया गया । जून में, समाचार लिखे जाने तक केवल तीन सौ से कुछ अधिक मानव दिवस सृजित किये गये हैं ।

झारखंड नरेगा वॉच के राज्य संयोजक जेम्स हेरेंज कहते हैं - "पिछले वर्ष कोरोना काल में मजदूरों के लिए मनरेगा संजीवनी साबित हुआ था । केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों की प्राथमिकता सूची में मजदूरों को काम और मजदूरी देने की रही थी । लेकिन इस वर्ष साल के प्रारंभ में ही करीब दो महीने तक काम के बाबजूद भी मजदूरों की मजदूरी का भुगतान नहीं करके सरकार ने मजदूरों को निराश किया । आज भ्रष्टाचार का आलम यह है कि किसी भी मनरेगा योजना में वास्तविक मजदूर कार्य करते नहीं मिलेंगे ।"

रोजगार के दूसरे संसाधन विकसित करने में भी सरकारी तंत्र नाकाम

मनरेगा से अलग रोजगार के दूसरे तंत्र भी विकसित किये जा सकते थे । लेकिन नाकाम जिला प्रशासन यह भी नहीं कर पा रहा है । एनएच98 का फोरलेन प्रोजेक्ट 650 करोड़ का है । इसको शुरू करने के लिए जिला प्रशासन ठेकेदार को जमीन उपलब्ध नहीं करवा पा रहा । संबद्ध प्रभावितों को मुआवजा भुगतान की लगभग दो सौ करोड़ की राशि पड़ी है । जिला भू अर्जन कार्यालय एक भी प्रभावित को मुआवजा भुगतान नहीं कर पाया । यह योजना शुरू होती तो छतरपुर, पीपरा और हरिहरगंज प्रखंड के हजारों लोगों को काम मिलता !

स्थिति उस घाव की तरह- न देख सकते हैं, न दिखा सकते हैं

मध्यमवर्गीय परिवार की स्थिति उस घाव के जैसी हो गयी है जिसे न तो देखा जा सकता है, न ही दिखाया जा सकता है । जो निम्न मध्यमवर्गीय परिवार खाद्य सुरक्षा योजना से जुड़े हैं, उनके लिए बाजार से सरसों तेल और मसाला तक खरीदना मुश्किल हो गया है । बेरोजगारी की नाकामी से उपजी कुंठा में हर दिन पारिवारिक कलह हो रहे हैं । मर्द राशन बेचकर महुआ का दारू पी रहे हैं, औरतें  झगड़ा कर रहीं हैं और बच्चे या तो  मोबाइल पर गेम खेल रहे हैं, पोर्न देखकर भविष्य तय कर रहे हैं या फिर अपराधी बनने के लिए गिरोह जुटा रहे हैं । बारिश अच्छी भी होगी तो बिन पूंजी किसान खेती कैसे करेंगे ?

भिंडी 3 रूपये किलो और सरसों तेल 200 के पार ! आपकी मंशा क्या है सरकार...?

लॉकडाउन की वजह से सब्जी की खेती करने वाले किसानों की कमर टूट गयी । जीवन भर कर्ज में डूबे रहने वाले किसान फिर से डूब गये । जिले में सबसे ज्यादा सब्जी की पैदावार हरिहरगंज, मोहम्मदगंज और सतबरवा प्रखंड क्षेत्र में होती है । सतबरवा के रजडेरवा, खामडीह, पोल पोल, सतबरवा आदि गांव में ही सैंकड़ों एकड़ में सब्जी की खेती की जाती है । कड़ी मेहनत और काफी पैसे खर्च कर रजडेरवा और खामडीह जैसे दर्जनों गावों के किसानों ने भिंडी एक रूपये किलो बेची । अन्य सब्जियों का भी यही हाल रहा । कोई सब्जी दस रूपये किलो से अधिक नहीं बिकी । महामारी ने इनका व्यवसाय चौपट कर दिया । अपनी स्थिति बयां करते हुए खामडीह की महिला किसान - मनोरमा देवी, कुसुम देवी आदि ने कहा कि कर्ज लेकर उपजायी गयी सब्जियों को वे पशुओं को खिलाने को मजबूर हुईं ।

किसानों से धान खरीद में हुआ भारी फर्जीबाड़ा, किसानों के धान पड़े रहे

अन्नदाताओं के साथ अमूमन धोखा ही होता है । यह फिर हुआ । धान खरीद केन्द्रों पर बिहार से ट्रक भरके धान आते रहे और फर्जी किसानों के अकाउंट को माध्यम से खरीदे जाते रहे । किसानों के धान पड़े रहे । किसानों ने जब जब शिकायत की, अधिकारियों ने चुप्पी साध ली । जांच का हौवा बना, जांच या कार्रवाई हुयी नहीं । शायद होगी भी नहीं !

कुम्हारों की चाक बंद, शबीनाओं की घुंघरू चुप, कलाकारों की कलाकारी ठप्प...

जिले में कुम्हारों जाति के ऐसे करीब 5 हजार लोग हैं जो अब भी अपने पुश्तैनी पेशा पर ही आश्रित हैं । कोरोना काल में इनके द्वारा बनाये गये मिट्टी के बर्तन नहीं बिके । अब परिवार पालना मुश्किल हो रहा है ।
जिले के हुसैनाबाद में काम न मिलने से यहां की करीब सौ से अधिक नर्तकियां भुखमरी की कगार पर हैं । पलामू में दर्जनों बेहतरीन गायक कलाकार हैं जिनकी टीम से सैंकड़ों लोग जुड़े हैं । उनके एक प्रोग्राम से दर्जनों लोगों को रोजी मिलती थी । सब कुछ ठप्प हो गया । शादी ब्याह के मौसम में ही ये पूरे साल का खर्च निकाल लेते थे । अब आगे कैसे कटेगी, पता नहीं । सरकारी मदद का ही आसरा है । सरकार बहादुर गहरी नींद से जागें, हाकिम-हुक्काम को ठोंक ठांककर सीधा करें, कोई आम आदमी की फिक्र करे, तब तो कुछ हो ? भगवान तो लॉक डाउन में पहले ही कपाट बंद कर चुके हैं !