जहां बटुकों के साथ तोता भी ले रहा है वेद और शास्त्रों की शिक्षा, हर दिन समय से आता है विद्यालय

Where parrot is taking education of Vedas and scriptures along with batuks, school comes every day on tim

जहां बटुकों के साथ तोता भी ले रहा है वेद और शास्त्रों की शिक्षा, हर दिन समय से आता है विद्यालय

-- समाचार डेस्क
-- 3 सितंबर 2021

मंदसौर (मध्य प्रदेश) । मंदसौर के पशुपतिनाथ मंदिर प्रबंध समिति द्वारा संचालित संस्कृत पाठशाला में बटुकों के साथ एक तोता भी वेद और शास्त्रों की शिक्षा ले रहा है  । संस्कृत पाठशाला में अध्यापन के दौरान अध्यापकों से लेकर बटुकों मुख से होने वाले शास्त्रों के मंत्रोच्चार को तोता ध्यान से सुनता है। हर दिन कक्षा के समय बटुकों की तरह समय पर पहुंचता है और पूरे समय संस्कृत में होने वाले मंत्रोच्चार को सुनता है।

ढाई-तीन माह से इस तोते की यही दिनचर्या है। यह तोता यहीं पर दाना-पानी और अन्य आहार भी लेता है। अब यह तोता संस्कृत पाठशाला का हिस्सा बन चुका है। सुबह आता है और दोपहर में उड़ जाता है । इसके बाद शाम को भी संस्कृत पाठशाला में कुछ घंटे के लिए आता है।

संस्कृत पाठशाला के आचार्य विष्णुप्रसाद ज्ञानी ने बताया कि दो-तीन माह से तोता प्रतिदिन यहां आ रहा है। वह परिसर में भी नहीं रहता है लेकिन हर दिन सुबह कक्षा लगने के साथ तोता भी यहां पहुंच जाता है। सुबह सात बजे बाद आता है और दोपहर तक यहीं रुकता है। इसके बाद फिर शाम को आता है। कुछ घंटे रुकने के बाद चला जाता है। यहीं बटुकों के बीच ही मंत्रोच्चार व कक्षा के समय पूरे समय रुकता है और शांत होकर सुनता है। यहां जो दाना-पानी रखा होता है उसका आहार लेता है।

एक बार आया तो यहीं का होकर रह गया तोता

ज्ञानी ने बताया कि कुछ माह पहले जब एक बटुक को सीखा रहे थे और संस्कृत शिक्षा का दौर चल रहा था तो यह तोता यहां आ पहुंचा। कुछ समय कोने में बैठा रहा और अचानक से बीच में आकर बैठ गया। तब सभी मंत्रोच्चार व वेद-शास्त्रों का उच्चारण कर रहे थे। फिर तीन से चार घंटे वह यहीं बैठा रहा और बटुक की पुस्तक के पास जा पहुंचा और चोंच से पुस्तक को खींचता रहा। धीरे-धीरे बटुक को चोंच मारने लगा और जब तक वह आसन से उठा नहीं वह परेशान करता रहा। बटुक के आसन से उठते ही आसन पर जाकर बैठ गया। तब से लेकर आज तक प्रतिदिन वह पाठशाला में कक्षा के समय मौजूद रहता है। यहां अध्यापन करने वाले सभी बटुक की तरह नियमित सदस्य बन गया है।

पहले नाग-नागिन का जोड़ा और खरगोश भी इसी तरह आते थे यहां

ज्ञानी जी का कहना है कि पहले इसी तरह नाग-नागिन का जोड़ा और खरगोश भी यहां आ चुके हैं । नाग-नागिन का जोड़ा भी पाठशाला आकर घंटों रहता था । उन्होंने कभी किसी को हानि नहीं पहुंचायी । कक्षा समाप्त होने के बाद वे भी चले जाते थे । यहां खरगोश भी इसी तरह आते-जाते रहे हैं । अध्यापकों ने बताया कि दरअसल यह सब संस्कृत के श्लोकों की करामात है जिसकी ध्वनियां वायुमंडल में पहुंचते ही प्रकृति और जीवों को आकर्षित करती है ।