आजादी के बाद से अब तक जहां कोई विधायक या मंत्री नहीं पहुंचे : जब वित्त मंत्री बनने के बाद श्री किशोर पहुंचे उस गांव तो क्या हुआ : देखें वीडियो
-- अरुण कुमार सिंह
पलामू । जनहित के संवेदनशील कार्यों और अन्य जनप्रतिनिधियों से कुछ अलग हटकर विकास कार्य करने के बूते अक्सर चर्चा में रहनेवाले छतरपुर विधायक सह राज्य के वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर मंत्री बनने के बाद अपने इलाके के भ्रमण के लिए अपने विधानसभा क्षेत्र के सबसे दुरूह और पिछड़े गांव को चुना । मंत्री अपने कार्यकर्ताओं और अधिकारियों के साथ नौडीहा प्रखंड क्षेत्र के अति पिछड़े और कभी घोर नक्सल प्रभावित रहे आदिम जनजाति बहुल करमा-पाल्हे गांव में शुक्रवार को पहुंचे । श्री किशोर पहले भी इस गांव में आकर यहां के जमीनी हालात से रूबरू हो चुके हैं ।
आजादी के बाद पहली बार कोई विधायक या मंत्री पहुंचे करमा-पाल्हे गांव
आजादी के बाद से अब तक पहली बार कोई विधायक या मंत्री इस गांव में पहुंचे थे । 2023 के वर्षांत में तत्कालीन पलामू उपायुक्त ए दोड्डे ने इस गांव का दौरा करके यहां के निवासियों के लिए कुछ बेहतर करने की कोशिश की थी । वैसे, इस गांव में बीडीओ-सीओ से लेकर पंचायत सचिव जैसे अधिकारी तक नहीं आते ।
दुरूह भौगोलिक स्थिति के कारण शेष आबादी से कटे हैं ये गांव
जमीन से करीब 2000 फीट की उंचाई पर डकिनियां पहाड़ पर बसा है करमा-पाल्हे गांव । स्थानीय लोगों का कहना है कि उनके पूर्वजों ने इस पहाड़ी का नाम डकिनियां इसलिए रखा था क्योंकि बहुत दिनों तक इस पहाड़ी से उतरने या चढ़ने के क्रम में कई लोगों की मौत हो गयी थी । तबसे यह प्रचलित हुआ कि यह पहाड़ ही डकिनियां है जो लोगों को खा जाती है ! जनजाति बहुल यह गांव, और इसके सटे तुरकुन और गोरहो गांव की भौगोलिक बनावट ही ऐसी है कि यहां तक आप केवल पैदल ही आ सकते हैं । पूरा इलाका उंची उंची पहाड़ियों से घिरा है । गांव के लोगों का कहना है कि पिछले चार पीढ़ी से वे यहां रह रहे हैं । राशन के लिए, पढ़ने के लिए, स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए, जरूरत के सामान आदि के लिए यहां के लोगों को चार किलोमीटर पहाड़ उतरकर कुल 12 किलोमीटर चलकर सरईडीह जाना पड़ता है । गांव के लोग अपने अपने साईकिल में ताला लगाकर साइकिल को पहाड़ के नीचे ही छोड़ देते हैं । पहाड़ से उपर गांव तक जाने के लिए ग्रामीणों ने पहाड़ी पर कच्ची सड़क बनायी थी । डीसी ए दोड्डे के भ्रमण काल में इस सड़क को दुरूस्त किया गया था और मंत्री जी के गांव जाने के पूर्व उक्त सड़क को आने जाने लायक बना दिया गया है । मंत्री राधाकृष्ण किशोर ने ग्रामीणों को आश्वस्त किया है कि वन विभाग से तालमेल करके चार महीने के अंदर गांव में पक्की सड़क बना दी जाएगी ।
न सड़क, न शिक्षा, न स्वास्थ्य सुविधा, न आधार कार्ड, न चापानल...! विकास से कोसों दूर हैं करमा-पाल्हे-तुरकुन-गोरहो जैसे गांव
पाल्हे की बात करें तो यह करीब 55 परिवारों की बस्ती है । यहां करीब 18 घर भूईयां 22 घर खरवार जनजाति और करीब 15 घर परहिया जनजाति के परिवार रहते हैं। लोगों की आजीविका जंगल पर आधारित है। पूरे गांव में दो कुयें हैं जिनमें एक गर्मी के दिनों में सूख जाता है । तब पूरा गांव एक ही कुवें से पानी पीता है । इस तरह गांव के आधे लोगों की जिंदगी सिर्फ कुयें से अपने घर तक पानी लाने में ही कट जाती है। यहां बिजली भी नहीं है । विद्यालय वर्ष 2017 में ही दूसरे विद्यालय से मर्ज कर दिया गया है। स्कूल की बिल्डिंग में अब ताला बंद है। पढ़ने की लालसा रखने वाले गांव के बच्चों को गांव से करीब 4 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है इसलिए गांव के अधिकतर बच्चे शिक्षा से वंचित हैं । आंगनबाड़ी भी नहीं है। बच्चों, गर्भवती और धात्री महिलाओं को पोषाहार का लाभ नहीं मिलता । घर घर अनाज पहुंचाने वाला डाकिया योजना भी यहां पूरी तरह फेल है । लोगों को अनाज लाने करीब 12 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है । कोई चिकित्सा सुविधा भी नहीं है जिसके कारण असामयिक मौतों की एक लंबी फेहरिस्त है । बच्चों का टीकाकरण भी नहीं हो पाता । न सड़क, न शिक्षा, न स्वास्थ्य सुविधा, न आधार कार्ड, न चापानल...। आधार कार्ड तक से वंचित हैं यहां के बहुत सारे ग्रामीण । आधार कार्ड नहीं रहने के कारण बहुत लोगों को मईंयां योजना, पेंशन और सरकारी आवास की सुविधा का लाभ नहीं मिल पाया है । गांव की युवा पीढ़ी अशिक्षित है । आवागमन की असुविधा होने के कारण गांव के लड़कों का शादी-ब्याह तक नहीं हो पाता । शादी के बाद दुल्हन बनकर आयी मंजू ने मोबाइल नेटवर्क नहीं रहने के कारण पिछले एक महीने से अपने मां-पिता से बात तक नहीं की है । उसकी चिंता है कि अब दुबारा मायके कैसे जाउंगी !
नक्सली गतिविधियों के कारण चर्चा में आये थे ये गांव
नक्सली गतिविधियों के कारण वर्ष 2018 में करमा-पाल्हे-तुरकुन गांव चर्चा में तब आये थे जबकि गांव का एक बड़ा नक्सली पकड़ा गया था । 28 फरवरी 2018 को छतरपुर के ही मलंगा पहाड़ पर हुए पुलिस नक्सली मुठभेड़ में इनामी नक्सली राकेश भुईयां के साथ पाल्हे-तुरकुन की दो लड़कियां भी मारी गयीं थीं । पाल्हे की एक लड़की को नक्सली बताकर जेल भेजा गया था ।
माओवादियों ने यहां की आधा दर्जन लड़कियों को अपने दस्ते में
किया था शामिल !
वर्ष 2000 के आसपास ही माओवादी नक्सलियों ने इस इलाके को अपना मजबूत ठिकाना बना लिया था । दुरूह भौगोलिक स्थितियों के कारण वह पूरा इलाका नक्सलियों का अभेद्य किले की तरह था । यहां के लोग बाहरी दुनियां से लगभग कटे हुए थे । यहां विद्यालय की नींव रखी गयी वर्ष 2013-14 के आसपास । लेकिन पढ़ाई नहीं होती थी। स्कूल में मास्टर आते ही नहीं थे। वर्ष 2015-16 में पाल्हे में जब पक्का स्कूल भवन बना तब भी शिक्षक हमेशा अनुपस्थित ही रहते थे । दिन-रात यहां नक्सलियों का डेरा जमा रहता था । कहते हैं कि वर्ष 2016 में पाल्हे और तुरकुन गांव की 6 लड़कियों को माओवादी नक्सलियों ने अपने दस्ते में शामिल कर लिया था । ग्रामीणों के मुताबिक अब भी गाहे बगाहे इस इलाके में टीएसपीसी नक्सली आते-जाते रहते हैं । लेकिन अब उनकी 'चलती' नहीं है।
सरईडीह के बाद से ही अब तक क्यों है कच्ची सड़क... ?
मंत्री के साथ आये वाहनों का काफिला सरईडीह से करीब 7 किलोमीटर दूर जंगली पथरीली पगडंडियों और कच्ची सड़क से होते हुए डकनियां पहाड़ी तक पहुंचा। बीच के गावों सरईडीह से शाहपुर, मंगराडीह, गम्हरिया, नोखिला, मतनाग आदि तक कहीं भी पक्की या मोरम वाली सड़क नहीं थी । सवाल है कि पाल्हे-तुरकुन-गोरहो-गोरहो जैसे गांव को आप वनक्षेत्र का गांव अथवा दुरुह भौगोलिक स्थिति के गांव बताकर यह कह सकते हैं कि यहां सड़क बनाना पेचिदा था । लेकिन सरईडीह से मतनाग तक भी तो सड़क नहीं है ? स्पष्ट है कि जनप्रतिनिधियों से लेकर सरकार और प्रशासन तक ने इस पूरे इलाके की अबतक उपेक्षा ही की है। आजादी के इतने सालों बाद भी इस इलाके के हजारों लोगों को सड़क जैसी मूलभूत सुविधा से वंचित रखना क्या अन्याय और लोकतंत्र के राजाओं के प्रति अपराध नहीं है ?
इस बार सरकार आये हैं तो कुछ करेंगे...
राधाकृष्ण किशोर पहले बतौर मंत्री जब करमा-पाल्हे पहुंचे तो ग्रामीण काफी खुश और उत्साहित थे । कई लोगों ने कहा कि इस बार सरकार पावर में आये हैं तो उनके लिए जरूर कुछ करेंगे ।
पंचायत प्रतिनिधि हर साल करवाते हैं नामचीन गायकों का प्रोग्राम
ये गांव ग्राम पंचायत करकट्टा के तहत आते हैं । इस पंचायत के मुखिया और उनके परिवार की अगुआई में भोजपुरी स्टार खेसारी लाल यादव सहित कई नामचीन कलाकारों का प्रोग्राम हर साल आयोजित करके लाखों रूपये पानी की तरह बहाये जाते हैं लेकिन पंचायत प्रतिनिधि करमा-पाल्हे जैसे गावों का विकास करने/करवाने में और लोगों को सरकारी सुविधाएं मुहैया करवाने में शायद कोई रूचि नहीं रखते ! ये चाहते तो इन गावों की तस्वीर आज इतनी भयावह न होती, ऐसा ग्रामीणों का कहना था ।
वोट की राजनीति नहीं करने आये हैं...: श्री किशोर
मंत्री श्री किशोर ने कहा कि वे यहां वोट की राजनीति नहीं करने आये हैं । चुनाव के दौरान में वोट लेने के लिए इन गांवों में वे नहीं गए थे, लेकिन मंत्री बनने के बाद इन गांव में सबसे पहले पहुंचे हैं । हेमंत सोरेन सरकार चाहती है कि हाशिये पर रह रहे लोगों का विकास पहले हो । अधिकारी और जनप्रतिनिधि दोनों अपने अपने दायित्वों का निर्वहन करें ।
बनेगी सड़क, चालू होगा स्कूल, खुलेगा आंगनबाड़ी, लगेगा चापानल
मंत्री श्री किशोर ने कहा कि वन विभाग से तालमेल करके इस गांव तक सड़क बनायी जायेगी । गांव के विद्यालय में एक माह के अंदर पढ़ाई शुरू हो जायेगी । उन्होंने कहा कि पाल्हे, तुरकुन, गुआदाग, रतनाग, सीढा गांव का स्कूल 2016-17 से बंद हैं जिन्हें फिर से खोला जाएगा । सिंचाई के लिए बड़ा तालाब बनाया जायेगा । पेयजल के लिए चापाकल लगाया जायेगा । लाभुकों के घर तक अनाज पहुंचाने की व्यवस्था करायी जायेगी। मंत्री श्री किशोर ने कहा कि कैबिनेट की बैठक निर्णय लिया गया है कि सुदूर इलाकों में बसे लोगों को आवागमन मुहैया कराने के लिए सरकार प्राथमिकता के आधार पर कार्य करेगी ।
ये भी थे मौके पर मौजूद
मंत्री श्री किशोर के कार्यक्रम में पाल्हे गांव तक मंत्री के साथ उनके पुत्र प्रशांत किशोर उर्फ बंकू बाबू, छतरपुर सीओ उपेन्द्र कुमार, बीडीओ आशीष कुमार, अरूण सिंह, रविन्द्र सिंह, ईश्वरी पांडेय, पप्पू सिंह, अशोक सोनी, छतरपुर प्रखंड क्षेत्र के कई मुखिया, रंजीत जायसवाल फंटूश, नौडीहा की प्रखंड प्रमुख, करकट्टा के मुखिया पति रामबली पासवान, टोन वर्मा, गुंजन, अनमोल मिश्र सहित दर्जनों लोग मौजूद थे ।