केवल जनबल : चुनावी समर में चतरा की धरती को डेग डेग नापने निकले श्रीराम सिंह

केवल जनबल : चुनावी समर में चतरा की धरती को डेग डेग नापने निकले श्रीराम सिंह

-- अरूण कुमार सिंह

चतरा लोकसभा से एक ऐसे व्यक्ति भी बतौर निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं जिनकी पृष्ठभूमि में राजनीति कभी रही ही नहीं । जो एक चर्चित फिल्म मेकर और निदेशक रहे हैं और जिन्हें 61वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से नवाजा जा चुका है । जिन्होंने प्रारंभिक दौर में चर्चित अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी से लेकर अशफाकउल्ला तक को ब्रेक दिया । जिन्होंने 2018 में, 'मुक्त भारत जल' के विचार के साथ भारत की लुप्त होती नदियों के बारे में और सभी को पीने का साफ पानी मिले तथा 'जल-जंगल-जमीन' के विचारों को साथ जागरूकता फैलाने के लिए अपने समर्थकों के साथ 15 मई को मुंबई से पदयात्रा शुरू की थी । जिन्होंने पानी के व्यावसायीकरण और जमीन, जल और जंगल पर लोगों के अधिकारों के मुद्दे पर प्रकाश डालते हुए मुंबई से झारखंड तक 82 दिनों की पैदल यात्रा की थी । जिन्होंने स्प्रिंग थंडर जैसी चर्चित फिल्म बनायी और जो बॉलीवुड की प्रसिद्ध गायिका मेघा श्रीराम के पति हैं । वही मेघा श्रीराम जिन्होंने कोक स्टूडियो से लेकर सैंकड़ों आंचलिक और गांधी गीतों के अलावा वॉलीवुड फिल्म शिवाय और भक्षक‌ के लिए भी टाइटल सांग गायी हैं ।

हां । हम श्रीराम सिंह उर्फ श्रीराम डाल्टन की ही बात कर रहे हैं जो इन दिनों चतरा लोकसभा से बतौर निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं । चुनाव में उन्हें मोतियों का माला चुनाव चिन्ह आबंटित किया गया है । बदन पर साधारण कपड़े, हाथ में चुनाव प्रचार की तख्ती और साथ में मेघा । एक छोटे डंडे में तख्ती लेकर कभी इस तो कभी उस चौराहे पर । तपती धूप में भी श्रीराम रेहड़ी वालों से लेकर मजदूरों, राहगीरों और दुकानदारों तक से बात करते हैं । सहचर और हमसफर मेघा वीडियो बनाती हैं ।

कुछ लोगों को यह खांटी पागलपन लगता है तो कुछ लोग इनके हिम्मत को सलाम करते हैं...

लोग देखते हैं और उन्हें समाजवादी दिन याद आते हैं । कुछ लोग ठहर कर श्रीराम से बात करते हैं तो कुछ इसे खांटी पागलपन मानकर मुस्कुराते हुए आगे बढ़ जाते हैं । कुछ अचंभित हैं । कुछ को उम्मीद है, तो कुछ श्रीराम और मेघा के हिम्मत की दाद देते हैं कि जिस जमाने में दौलत, कार्यकर्ता, भीड़, नामवर राजनीतिक पार्टियां और कारों का काफ़िला ही चुनाव का पैमाना बन चुका हो, उस जमाने में ऐसे और इस तरह से हाथ में एक तख्ती भर लेकर चतरा की धरती को मापने की हिम्मत कैसे कर सकता है ? इस संघर्ष अंतिम परिणाम चाहे जो हो, इतना तो स्पष्ट है कि श्रीराम आम लोगों की जिंदगी के मुद्दों को सियासी विमर्श का हिस्सा बनाने की लगातार कोशिश कर रहे हैं ।

चुनाव में जीत-हार से अधिक महत्वपूर्ण मुद्दे और संकल्प हैं : श्रीराम डाल्टन

श्रीराम डाल्टन कहते हैं कि - "चुनाव में जीत-हार से ज्यादा महत्वपूर्ण मुद्दे और संकल्प है, जिन्हें आप जमीन पर उतराना चाहते हैं। जिन मुद्दों और संकल्प को आवाज देने के लिए, आम आदमी की जिन चुनौतियों को हम फिल्मों के माध्यम से आवाज देते रहे हैं, उन चुनौतियों पर बहस और कार्यान्वयन करने की शुरुआत करने का वक्त यही है। यही कारण है कि धन बल से भरपूर सियासत के इन महारथियों को हमने चुनौती पेश की है ।"

श्रीराम कहते हैं कि - "आज जिन्हें नेता कहा जा रहा है, वे पार्टियों के मोहरे भर हैं । उनकी अपनी न तो कोई सोच है न संकल्प । समाज और राष्ट्र के प्रति कोई सपना नहीं है । क्षेत्र के विकास का कोई ब्लू प्रिंट उनके पास नहीं है। वे एक सियासी व्यापारी भर हैं ।"

श्रीराम कहते हैं - "समाज के लिए कुछ करना चाहता हूं । मैं चाहता हूं कि नेतरहाट क्षेत्र में एक बीएसयू के तर्ज पर एक विश्वविद्यालय की स्थापना की जाये । दूसरी प्राथमिकता मेरी स्वास्थ्य है । चतरा क्षेत्र में स्वास्थ्य के क्षेत्र मे कुछ काम करना चाहता हूं, जो अन्य क्षेत्रों के लिए एक मॉडल हो । मेरी तीसरी प्राथमिकता रोजगार है । देश दुनिया में झारखंड के मजदूरों को सस्ते मजदूर के रूप मे देखा जाता है । रोजगार के अभाव में झारखंड के युवा यहां से पलायन कर रहे हैं । बहुत ही दुख होता है जब देखता हूं कि जिस मां बाप ने अपने बच्चों का लालन पालन कर बड़ा किया, जब माता पिता को बच्चों की जरूरत होती है तब वे यहां से काम की तलाश में पलायन कर जाते हैं । क्षेत्र में रोजगार की ऐसी व्यवस्था हो कि लोग यहां से पलायन नहीं करें, इसके लिए प्रयास करना चाहता हूं । पर्यावरण के अलावा यहां आर्ट व कल्चर के क्षेत्र में भी कुछ करना चाहता हूं ।"

पिछले तीन दशक के दौरान इस इलाके के लोगों ने नहीं देखा ऐसा प्रत्याशी

चतरा लोकसभा क्षेत्र के दर्जनों लोगों ने कहा कि उन्होंने पिछले तीन दशक में अपने इलाके में न तो ऐसा कोई प्रत्याशी देखा है और न ही लोकसभा क्षेत्र में ऐसा जनसंपर्क अभियान । कुछ जानकार लोगों ने कहा कि भारत जैसे विकासशील देश में इसी तरह के चुनाव प्रचारों की जरूरत है और आनेवाले दशकों में चुनाव प्रचार प्रसार का यह प्रयोग आगे चलकर औरों के लिए जरूरत बन जाएगा ।