आखिर भाजपा के हो ही गए कमलेश सिंह : अब क्या होगा हुसैनाबाद में
-- अरूण कुमार सिंह
पलामू । प्रदेश भाजपा कार्यालय में, पूर्व नियोजित कार्यक्रम में पूर्व एनसीपी विधायक कमलेश कुमार सिंह आखिरकार शुक्रवार को भाजपा के हो ही गए । भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने कमलेश सिंह को भाजपा की सदस्यता दिलायी । कमलेश सिंह के साथ सैंकड़ों समर्थक, उनके पुत्र और परिवार के अन्य सदस्य भी गये थे । उनके भाजपा में शामिल होने पर चुनाव सह प्रभारी हिमंता ने कहा कि कमलेश सिंह के पार्टी में आने से संगठन को मजबूती मिलेगी । जबकि कमलेश सिंह ने कहा कि कार्यकर्ताओं के साथ मीटिंग करके भाजपा में शामिल होने का निर्णय लिया गया था । वे समय के साथ बदल रहे हैं । समय के साथ बदलना जरूरी है । इस अवसर पर भाजपा के कई दिग्गज नेता मौजूद थे ।
कमलेश सिंह को भाजपा से दूर रखने के लिए अंत तक कोशिश की कई नेताओं ने...
कमलेश सिंह के भाजपा में आने की खबर जैसे ही फैली, भाजपा नेता ज्योतिरिश्वर सिंह काफी मुखर हो गये । उन्होंने समाचार माध्यमों से लेकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म तक पर कमलेश सिंह के भाजपा में शामिल होने का मुखर विरोध किया । ज्योतिरीश्वर सिंह के आवास के एक कमरे में भाजपा नेता और पूर्व प्रत्याशी विनोद सिंह, प्रफुल्ल सिंह, कामेश्वर कुशवाहा, रविन्द्र सिंह आदि जमा हुए और कहा कि वे प्रदेश से लेकर केन्द्र तक कमलेश सिंह के भाजपा में शामिल होने के विरोध में अपना विरोध दर्ज करायेंगे । एक दिन पूर्व हुसैनाबाद में एक बैठक भी आयोजित की गयी जिसमें कहा गया कि कमलेश सिंह के भाजपा में शामिल होने पर सैंकड़ों कार्यकर्ता भाजपा छोड़ देंगे । हांलाकि, अंत तक इन नेताओं की नहीं चली और कमलेश सिंह आखिरकार भाजपा के हो ही गए ।
कई नेताओं का चुनावी सपना हो सकता है धाराशायी !
कमलेश सिंह के भाजपा में शामिल होने के बाद हुसैनाबाद विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ चुके अथवा चुनाव लड़ने का मंसूबा पालने वाले कई भाजपा नेताओं को पार्टी ने जोर का झटका धीरे से दे ही दिया ! वैसे तो राजनीति बहुत हद तक क्रिकेट की तरह अनिश्चितताओं और अवसर का खेल है । लेकिन जानकार सूत्रों का कहना है कि भाजपा में शामिल होने के पूर्व ही कमलेश सिंह ने इस विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा से अपना टिकट कंफर्म करवा लिया है ! अगर ऐसा ही होता है तो उक्त नेताओं को, कम से कम इस विधानसभा चुनाव में, अब शायद भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने का सपना शायद ही पूरा हो पाये...! देखना दिलचस्प होगा कि विरोधी खेमे के नेता अब जन बल का प्रदर्शन करते हुए कोई नया खेल खेलेंगे या 'अब न सहेंगें' का नारा लगाकर फिर सबकुछ चुपचाप सह लेंगे...!
पत्रकार उदय ओझा कहते हैं - हुसैनाबाद ने दलबदलुओं को हमेशा सबक सिखाया
हुसैनाबाद के पुराने पत्रकार उदय ओझा कहते हैं कि दलबदलू और गठबंधन प्रत्याशी को कभी भी राजतिलक नहीं लगाये हैं हुसैनाबाद के मतदाता । अपनी बात को साबित करने के लिए उदय ओझा कहते हैं कि - वर्ष 1990 के चुनाव में मात्र 163 वोटों से भाजपा से जीते दशरथ कुमार सिंह भाजपा छोड़कर सम्पूर्ण क्रांति दल और फिर लालू जी के साथ जनता दल और फिर समता पार्टी में जाने के बाद जब 1995 में मशाल छाप के सिंबल पर चुनाव लड़े तो उन्हें मात्र 8797 वोट मिला। चुनाव परिणाम में वह चौथे स्थान पर रहे और उन्हें अपनी जमानत भी गंवानी पड़ी थी। इसी प्रकार 1995 में जनता दल से बम्पर वोटों से चुनाव जीतने वाले अवधेश बाबू जब 2000 में दलबदल कर भाजपा से चुनाव लड़े तो उन्हें मात्र 8359 वोटों से ही संतोष करना पड़ा और उनकी भी जमानत जब्त हो गयी थी। चुनाव परिणाम में अवधेश बाबू भी चौथे स्थान पर रहे थे। पूर्व विधायक दशरथ कुमार सिंह वर्ष 2005 एवं 2009 में जदयू एवं भाजपा के गठबंधन के प्रत्याशी के तौर पर जदयू के सिंबल पर चुनाव लड़े। वर्ष 2005 में दशरथ सिंह को 20793 वोट और 2009 में 22163 वोट मिला और चुनाव में पराजय का मुंह देखना पड़ा। वर्ष 2009 के चुनाव में बीएचयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष बीरेन्द्र सिंह जब राजद पार्टी से बगावत कर कॉंग्रेस से चुनाव लड़े तो उन्हें मात्र 2521 वोट ही मिले। वर्ष 2014 में दशरथ सिंह जब जदयू छोड़कर झामुमो से चुनाव लड़ा तो उन्हें 7076 वोट मिले थे। वर्ष 2014 के चुनाव में बसपा के कुशवाहा शिवपूजन मेहता ने 57275 वोट लाकर रेकॉर्ड मतों से चुनाव जीते। लेकिन जब 2019 में दलबदल कर आजसू से चुनाव लड़ा तो उन्हें मात्र 15544 वोट मिले और जमानत जब्त हो गयी। हुसैनाबाद में एक अपवाद में राजद प्रत्याशी संजय कुमार यादव ही रहे हैं ।
अब तक अपने ही बल पर चुनाव जीते हैं कमलेश सिंह
2005 के विधानसभा चुनाव में अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी राजद के संजय सिंह यादव को मात्र 35 वोटों से हराकर कमलेश सिंह पहली बार राकांपा के टिकट पर विधायक बने थे । इसके बाद भ्रष्टाचार के बड़े मामले में फंसने के बाद 2009 में 12.8% वोट लेकर वे चौथे स्थान पर रहे थे । 2014 में 19.8% वोट लेकर वे दूसरे नंबर पर रहे । इस बार, यानी 2019 में 25.2% वोट लेकर उन्होंने चुनाव में जीत दर्ज की । इस बार एंटी इनकमबैक्सी फैक्टर होने के बावजूद भी भाजपा का कोर-कैडर वोट अगर उनके साथ प्लस हो गया तो हुसैनाबाद की सीट भाजपा की झोली में जा सकती है ।
लेकिन इस पूरे परिप्रेक्ष्य में यह भी देखना लाजिमी होगा कि हुसैनाबाद में, अब तक के विधानसभा चुनाव में पार्टियों की नहीं, व्यक्तिगत छवि ही चली है । राकांपा का इस इलाके में कभी जनाधार नहीं रहा लेकिन उसके बावजूद भी कमलेश सिंह चुनाव जीते । कमोवेश यही स्थिति कुशवाहा शिवपूजन मेहता की और फिर वर्ष 2019 में बतौर निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव लड़कर (हांलाकि बाद में वे भाजपा समर्थित उम्मीदवार हो गए थे) 27,860 वोट लानेवाने विनोद कुमार सिंह और एजेएसयूपी के टिकट पर चुनाव लड़कर 15544 वोट लानेवाले कुशवाहा शिवपूजन मेहता की भी थी ।