नेता जी के जान सांसत में बा : राते दिने लागल ही आऊ पूंजियो लगावत ही बाकि टिकटवा लेके अगर ऊ सीधे ऊपरे से टपक जाई त का होई बाप
-- अरूण कुमार सिंह
"आलाकमान जबसे कहे हैं कि क्षेत्र में जाओ औ मेहनत करो, तबसे राते-दिने लागल हैं । मेहनतवो कर रहे हैं । देह को देह नहीं समझ रहे । मेहरारू के नजर भरके देखला कुछो दिन हो गया है । दिल खोलके पूंजियो लगा रहे हैं । बाकि ऐ हो, अगर ककवा टिकटवा लेके सीधे ऊपरहिं से टपक गया या फिर ई सीटवा गठबंधन में चला गया तब का होगा ? तब हम का करेंगे बाप...?"
चुनावी मौसम में यह डर किसी एक दल का या किसी एक नेता का नहीं है । बहुत सारे नेता इस डर के शिकार हैं । करीब करीब हर दल में ऐसी स्थिति है । नये लोगों को राजनीति के पुराने माहिर खिलाड़ियों से डर है और पुराने खिलाड़ी अभी तक साईलेंट होकर खेल रहे हैं ...
जैसे कि, गढ़वा में एक दिग्गज अभी तक अपना पत्ता नहीं खोले हैं । पिछले कुछ महीने से अपने इलाके में, लोगों के बीच बस घूमे जा रहे हैं । वे जितना अधिक घूम रहे हैं, उनके संभावित दल के अन्य नेताओं की बेचैनी उतनी ही बढ़ती जा रही है ।
भवनाथपुर में चुनाव के पहले दो यार थे । संयोग से दोनों एक ही दल में हैं और चुनाव भी दोनों को उसी दल से लड़ना है । कभी आमने सामने होते हैं तब दोनों की कोशिश यही रहती है कि मुंह फुलौवल की नौबत न आ जाये ! लेकिन यह तो देर सबेर होना ही है न ! अचानक किसी के उपर से टपक जाने का डर यहां भी है ।
पलामू के डाल्टनगंज में लोहा, लोहे को ही काटने पर आमादा है । बाबूजी पूरे जाति के सर्वमान्य नेता हुआ करते थे । अब लोग लड़का समझकर बगावत पर उतर आया है ! दूसरे दल के नेता निश्चिंत थे । यह सोचकर कि लोकसभा चुनाव में चचा की करारी हार हुई है तो वे कम से कम विधानसभा में तो चुप बैठेंगे ? लेकिन चचा हैं कि मानते नहीं । विधानसभा में भी चचा ताल ठोंक रहे हैं और भतीजों की राजनीति पुलाव बनती जा रही है । ये चचा भी कम नहीं हैं । इन्हें भी पार्टी उपर से ही टपका देती है...
पांकी में उपर उपर सब ठीक ठाक है । लेकिन कहने वाले कहते हैं कि नीचे से मोकामा घाट है । यहां भी बहुत हलचल है पानी में । मरद से लेकर औरत तक पानी पिला पिलाकर नचाने और नचा नचाकर मारने में सक्षम हैं यहां । और, उपर से टपकने का खतरा यहां भी कम नहीं है ।
बिश्रामपुर तो पहले से ही राजनीति के माहिर खिलाड़ियों की जगह रही है । यहां हर कोई दम लगाकर गोल मारना चाहते हैं लेकिन यहां भी चाचों के आगे अभी तक भतीजों का नहीं चला । इस चुनाव में भी सर्वाधिक खतरा चचाओं से ही है । जाने ये चाचा कब क्या कर जायें...?
हुसैनाबाद में अचानक टिकट हासिल करके ऊपर से टपकने वाले महारथियों की अब भी कोई कमी नहीं है । नामांकन दाखिल करने के दिन तक यहां के कई नेताओं की जान सांसत में फंसी रहती है...
और छतरपुर ! यहां तो गजबै स्थिति है । राजनीति के माहिर एक पुराने खिलाड़ी से यहां एक नहीं, कम से कम चार दल के लोग बेहद डरे हुए हैं । भतीजों को बौखलाया देखकर चचा ने बिल्कुल चुप्पी साध ली है । लेकिन उनकी चर्चा गली गली है उनके बिना बोले ही घमासान मचा हुआ है कि पता नहीं वे किस दल से टिकट लेकर आ जायें...! कई नेता तो भोंकार पार रहे हैं । कुछ चिल्ला रहे हैं और कुछ देवता मना रहे हैं कि हे भगवान, चाहे जो हो, इन्हें मेरे दल से टिकट न मिले...! अब देखिये आगे होता है क्या ...? बाकि तो जे है से हईये है...