पलामू : छतरपुर में पहली बार पकड़ी गयी अवैध पोस्ते की खेती : छतरपुर पुलिस ने 5 एकड़ में लगे अवैध पोस्ते की खेती को नष्ट किया

पलामू : छतरपुर में पहली बार पकड़ी गयी अवैध पोस्ते की खेती : छतरपुर पुलिस ने 5 एकड़ में लगे अवैध पोस्ते की खेती को नष्ट किया

-- अरूण कुमार सिंह

पलामू जिले के छतरपुर इलाके में संभवतः पहली बार पोस्ता की खेती हो रही थी ! छतरपुर पुलिस ने बटाने डैम के कैचमेंट‌ एरिया में लगभग पांच एकड़ में लगे पोस्ता (अफीम) की खेती को नष्ट किया है । पोस्ता की खेती नष्ट करने के लिए छतरपुर थाना प्रभारी शेखर कुमार सदल-बल मौके पर पहुंचे । पुलिस अधिकारियों ने कपड़े खोलकर डैम पार किया और फिर ट्रैक्टर से पोस्ते की खेती को तबाह कर दिया । यह कार्रवाई उस वक्त की गयी है जबकि अधिकांशतः फसल तैयार हो गयी थी । बस, चीरा लगाने की देर थी । थाना प्रभारी शेखर कुमार ने कहा कि जहां जहां पोस्ते की खेती होने की सूचना मिलेगी, वहां वहां फौरी कार्रवाई की जाएगी ।

मनातू इलाके के अफीम माफियाओं ने पहली बार छतरपुर इलाके में करवायी है पोस्ते की खेती

मनातू के अफीम माफियाओं ने पहली बार छतरपुर में पोस्ते की खेती करवायी है । खबर है कि उक्त स्थल के अलावा छतरपुर के चीरू, हुलसम, कोदवरिया, मंझौली, हुलसम के आसपास के जंगली इलाकों में करीब सौ एकड़ में पोस्ते की खेती करवायी गयी है । इसके लिए अफीम माफियाओं ने ही छतरपुर वालों को पोस्ते की बीज से लेकर सारा साधन उपलब्ध करवाया है । हर जगह पर एक व्यक्ति को बतौर मैनेजर चुनकर संसाधन मुहैया करवाये गये हैं । मैनेजर चुने गये लोगों को इस बात का जिम्मा दिया गया है कि वे स्थानीय से लेकर बाहरी लोगों तक को मैनेज करें जो उनके धंधे में खलल डाल सकते हैं । कहा जा रहा है कि पोस्ते की खेती के लिए कुख्यात पलामू जिले के मनातू, तरहसी, पिपराटांड़, पांकी, चतरा और झारखंड से सटे बिहार के गया जिले के जंगली इलाके में पोस्ते की खेती जोरों पर हो रही थी । इन इलाकों पर पुलिस समेत सबकी नजर थी, इसलिए माफियाओं ने इस बार पोस्ते की खेती के लिए छतरपुर और नौडीहा बाजार प्रखंड क्षेत्र के इलाके को चुना ।

क्या है यह अफीम ? कैसे की जाती है इसकी खेती ? इसके बारे में और जानिये

अफीम की खेती के लिए सबसे पहले सरकारी से लाइसेंस लेना होता है । लेकिन इसका लाइसेंस भी हर जगह खेती के लिए नहीं मिलता । अफीम की खेती का लाइसेंस वित्त मंत्रालय की तरफ से जारी किया जाता है । क्राइम ब्यूरो और‌ नारकोटिक्स विभाग सतत् इसपर नजर रखता है । नारकोटिक्स इंस्टीट्यूट से  अफीम का बीज मिलता है ।  जवाहर अफीम-16, जवाहर अफीम-539 और जवाहर अफीम-540 जैसी किस्में अफीम की खेती में काफी लोकप्रिय हैं । अफीम के बीज लगाए जाने के बाद उसके पौधों में 100-120 दिनों में फूल आने लगते हैं । वक्त गुजरने के साथ-साथ अफीम के पौधों पर लगे फूल झड़ जाते हैं और उसमें डोडे लग जाते हैं । अफीम की हार्वेस्टिंग के लिए इन डोडों पर एक खास तरीके से चीरा लगाया जाता है । इसके बाद इसमें से एक तरह का तरल निकलने लगता है, जिसे पूरी रात निकलता छोड़ दिया जाता है । अगले दिन सुबह धूप निकलने से पहले-पहले डोडों से निकला हुआ पदार्थ जमा कर लिया जाता है, जो जमकर काला हो चुका होता है । यह तब तक किया जाता है, जब तक कि डोडों से तरल निकलना बंद नहीं हो जाता । जब तरल निकलना बंद हो जाता है तो फिर उस फल को सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है । जब फसल सूख जाती है तो फिर उसके डोडे तोड़कर उससे बीज निकाल लिए जाते हैं । डोडे के बीज को बाजार में बेचकर भी किसान की अच्छी कमाई हो जाती है ।

काले बाजार में अफीम का दाम 1 से 1.5 लाख रुपये तक हो सकता है । स्थल पर ही माफिया इसे एक लाख रूपये किलो खरीद लेते हैं । डोडा भी हजार रूपये किलो बिक जाता है । झारखंड में अवैध पोस्ते की खेती का बाजार 100 करोड़ से भी अधिक का है । पोस्ता की खेती करने के आरोप में अभी तक करीब 450 से अधिक ग्रामीण जेल जा चुके हैं, जबकि पलामू के विभिन्न थानों में पौने दो सौ से भी अधिक एफआईआर दर्ज किए गए हैं । हालांकि इस साल पोस्ता की खेती में कमी आई है । मिली जानकारी के अनुसार, यूपी, बिहार, दिल्ली, झारखंड, हरियाणा और पंजाब से महंगी गाड़ियों से ब्रोकर अफीम खरीदने आते हैं । पहले तो अपने पैसे देकर पोस्ते की खेती करवाते हैं फिर अफीम तैयार होने के बाद वे लोग आकर खरीद कर बाहर ले जाते हैं । अफीम एक ऐसा चीज है जो उसके फल से लेकर पत्ता और लकड़ी तक बिकती है ।