ऐसी स्थिति रही तब तो एनएच 98 फोरलेन के लिए अगले बरस तक भी जमीन शायद ही मिल पाये

ऐसी स्थिति रही तब तो एनएच 98 फोरलेन के लिए अगले बरस तक भी जमीन शायद ही मिल पाये


-- अरूण कुमार सिंह
-- 17 नवंबर 2021

केन्द्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्रालय ने राज्य सरकार द्वारा समय पर जमीन उपलब्ध नहीं करवाने के कारण एनएच 98 फोरलेन प्रोजेक्ट (सिलदाग से हरिहरगंज) को काली सूची में डाल दिया है । राज्य सरकार को कुछ वक्त मिला है ताकि वह जमीन उपलब्ध करवाने की कवायद कर सके । पिछले 28 अक्तूबर को राज्य के मुख्य सचिव ने पूरे मामले की समीक्षा करते हुए कहा है कि हर हाल में सड़क‌ निर्माण के लिए नवंबर माह तक जमीन उपलब्ध करवा दी जाए । संबद्ध अधिकारियों ने खेत में फसल लगे होने की बात करते हुए आश्वासन दिया है कि फसल कटते ही सड़क निर्माण के लिए जमीन उपलब्ध करवा दी जाएगी । संबद्ध अधिकारियों ने यह भी कहा है कि जमीन अधिग्रहण की अधिकांशतः अड़चनें दूर कर ली गयीं हैं ।

कुछ और ही है जमीनी हकीकत

लेकिन यह सच नहीं है । जमीनी हकीकत यही है कि छतरपुर, पिपरा और हरिहरगंज प्रखंड क्षेत्र के लगभग तीन दर्जन गांवों के प्रभावित रैयत अब भी मुआवजा लेने को तैयार नहीं हैं । कारण है, निर्धारित मुआवजा दर का बाजार दर से काफी कम होना । जो अधिकतर प्रभावित मकानों का मुआवजा ले रहे हैं, या ले चुके हैं, उनका भी कहना है कि उनके मकानों का मूल्य काफी कम लगाया गया है और तीस साल पहले बंदोबस्त उनके जमीन को रैयती नहीं मानकर उन्हें संपूर्ण मुआवजा नहीं दिया गया । प्रभावित कहते हैं कि मुआवजा दर नियम के मुताबिक नहीं तय किया गया है । ऐसे अधिकतर मामले पलामू अपर समाहर्ता के अर्बिटेटर कोर्ट में पिछले कई महीने से पड़े हुए हैं, जिनपर आज तक फैसला नहीं हुआ है ।

टीम का हुआ है गठन, काम शुरू हो तो बात बने !

जमीन का मामला सुलझाने के लिए पलामू डीसी के निर्देशानुसार टीम का गठन हुआ है । इस टीम में जिला भू अर्जन पदाधिकारी, एसी सुरजीत सिंह, छतरपुर एसडीओ एनके गुप्ता और संबद्ध इलाके के सीओ हैं । लेकिन अभी तक टीम ने अपना काम शुरू नहीं किया है । एक संबद्ध अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि दिसंबर तक सरकार का 'सरकार आपके द्वार' कार्यक्रम चलेगा । उसके बाद संभवतः पंचायत चुनाव की घोषणा हो जाए ! ऐसे में, कम से कम उन्हें तो नहीं लगता कि प्रोजेक्ट के लिए जमीन से संबद्ध मामले हल हो जायेंगे !

सड़क जमीन पर ही बननी है और जमीन का मामला ही अंटका रहे अधिकारी

संतोष गुप्ता नामक एक प्रभावित ने संबद्ध बातचीत में कहा कि "कई गावों में दर्जनों ऐसे रैयत हैं जिनकी जमीन चालीस, पचास, साठ या सत्तर साल पहले बंदोबस्त हुई है । तब से आजतक वे अपनी जमीन पर काबिज भी हैं और सरकार को मालगुजारी भी दे रहे हैं । ऐसे रैयतों की संपूर्ण सूची तक भू अर्जन कार्यालय अथवा अन्य संबद्ध कार्यालय के पास नहीं है । होना तो यह चाहिए था कि सीओ से ऐसे सभी रैयतों का रिपोर्ट लेकर उन्हें मुआवजा भुगतान कर देना चाहिए था । लेकिन अभी तक अर्बिटेटर कोर्ट ने भी ऐसे मामलों में कोई निर्णय तक नहीं दिया है । अधिकारी सिर्फ नवंबर तक जमीन उपलब्ध करवाने की बात कर रहे हैं तो यह मुमकिन नहीं दीखता ।"

तो क्या जमीन हथियायेगा प्रशासन...?

संबद्ध प्रशासनिक अधिकारी संबद्ध बातचीत में अक्सर इस आशय की बात कहते हैं, जो संभव नहीं दीखता । जमीन हथियाने की जोर जबरदस्ती सिर्फ माहौल को ही अशांत करेगा ‌। प्रभावित 38 गावों के अधिकांशतः लोग जमीन अधिग्रहण संबंधी प्रशासनिक नीतियों का पुरजोर विरोध कर रहे हैं । कई जगह पर प्रभावितों ने सड़क का काम शुरू करने से ठेकेदार को रोका है । लोग आक्रोशित हैं । कई बार प्रभावितों ने कहा है कि ऐसी स्थिति में जान दे देंगे, पर जमीन नहीं देंगे । बेहतर है कि संबद्ध प्रशासनिक अधिकारी जमीन संबंधी मामलों का त्वरित निष्पादन कर सड़क बनने की प्रक्रिया को गति दें ।