पलामू में सरकारी शराब दुकान वाले हर माह ग्राहकों से करते हैं एक करोड़ से अधिक की वसूली

पलामू में सरकारी शराब दुकान वाले हर माह ग्राहकों से करते हैं एक करोड़ से अधिक की वसूली

-- अरूण कुमार सिंह

पलामू जिले में 96 लाइसेंस धारी अंग्रेजी शराब दुकान हैं । इन शराब दुकानों की औसत बिक्री प्रतिदिन 20 हजार से लेकर 1 लाख 60 हजार के बीच है । जिले भर के इन दुकानों में 50 से 60 लाख की शराब प्रतिदिन बेची जाती है । शराब के हर ब्रांड पर लिखी गयी कीमत में से 12 प्रतिशत शराब दुकान के मालिकों के लिए राशि बतौर मुनाफा निर्धारित है । इसके बावजूद भी शराब के हर बोतल, अद्धा और पौव्वा पर शराब दुकान पर बैठे सेल्स मैन ग्राहकों से लिखी गयी कीमत से करीब 4-5 लाख रूपये हर रोज वसूल रहे हैं । इस तरह ग्राहकों से हर माह करीब एक करोड़ रूपयों की अवैध वसूली हो रही है ।

एक बोतल शराब पर होती है 40-70 रूपये की अवैध वसूली

प्राप्त जानकारी के मुताबिक लाईसेंस धारी अंग्रेजी शराब दुकान वाले बोतल (750 एमएल) पर 40 से 70 रूपये की, अद्धा (375 एमएल) पर 20 से 35 रूपये की और पौव्वा (180 एमएल) पर 10 से 20 रूपये की अवैध वसूली करते हैं । यही स्थिति ‌देशी शराब के ब्रांड और पाउच में भी है । हांलाकि, यह अलग और कम है ।

अवैध वसूली में होती है रंगदारी से लेकर मारपीट तक

शराब के बोतल पर लिखी हुई कीमत से अधिक वसूल करने में हर दिन किसी न किसी दुकान पर ग्राहक हंगामा करते हैं । गाली गलौज से लेकर मारपीट तक होती है । शराब का ठेकेदार, सेल्समैन वगैरह अगर मजबूत पड़ा तो ठीक, वरना ग्राहकों से समझौता हो जाता है । हर दुकान के लोग आसपास के 'बड़े' और 'रसूख वाले' लोगों को चिन्हित कर लेते हैं जिन्हें अंकित मूल्य पर ही शराब दी जाती है और ये लोग खुद को धन्य भी समझते हैं । हांलाकि, इस स्थिति को लेकर हुसैनाबाद से लेकर पांकी तक में हर दिन हंगामा हो रहा है ।

अवैध वसूली गयी राशि होती है 'सेटिंग' में खर्च ...!

शराब के कारोबार से जुड़े सूत्रों ने ही बताया कि ग्राहकों से वसूल की गयी अतिरिक्त राशि संबद्ध विभाग और संबद्ध शहर के अधिकारियों, पुलिस और जनप्रतिनिधियों को 'सेट' करने के लिए खर्च की जाती है । इसके बदले वे दुकानदार को हर संभव-असंभव छूट देते हैं । इन छूट में दूसरे राज्यों में शराब की तस्करी में दिया गये छूट भी शामिल हैं ।

जो पीता है, भुगतता भी है, बोलता कोई नहीं...

यह गजब का मसला है । हर दिन अपनी जेब कटवाने वाले उपभोक्ता भी इस मसले पर चुप रहते हैं और अधिकारी से लेकर जनप्रतिनिधि तक भी । इसी स्थिति का जमकर फायदा शराब दुकान वाले उठा रहे हैं । नियम यह है कि हर शराब दुकान के बाहर शराब के ब्रांड के साथ मूल्य प्रदर्शित करना आवश्यक है । शराब के साथ बिक्री की रसीद भी दी जानी चाहिए, लेकिन ऐसा कहीं नहीं है । पूर्व उत्पाद अधीक्षक ने बहुत हद तक इस स्थिति को कंट्रोल करने की कोशिश की थी और किया भी था । लेकिन एक्साइज विभाग की वर्तमान टीम तो लोगों का छोड़िये, पत्रकारों तक का न तो फोन उठाती है और न ही मैसेज का जवाब देती है । ऐसी स्थिति में आप ही तंत्र के कार्यकलापों और संबद्ध अधिकारियों की कार्य पद्धति का ठीक ठाक विश्लेषण कर सकते हैं ।