अतिथि की कलम से : जोरी गाँव खुद गढ़ रहा समृद्धि का नया अध्याय

अतिथि की कलम से : जोरी गाँव खुद गढ़ रहा समृद्धि का नया अध्याय

-- प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता जेम्स हेरेंज की कलम से

ढाई दशक पूर्व तक जोरी गाँव के 200 आदिवासी परिवारों का गुजारा पूर्णत: स्थानीय बाजार महुआडाड़ में जलावन की लकड़ी बेचकर चलता था। आज उन आदिवासियों के खेत खलिहान जीरा फूल जैसे सुगंधित चावल के धान से लहलहा रहे हैं। सिर्फ यही नहीं इस गाँव के किसान रब्बी फसल के रूप में बटुरा (छोटा मटर) मसूर और गेहूँ की ऊपज भी वृहत पैमाने पर करने लगे हैं। गाँव के युवा अजित लकड़ा बताते हैं कि सामान्य बारिश की स्थिति में 2 लाख से अधिक का धान प्रत्येक वर्ष बेचते हैं। विगत वर्ष जब राज्य के अधिकांश हिस्से सुखाड़ की चपेट में थे तब भी उन्होंने 27 हजार रुपये का धान विक्री किए थे। इस वर्ष बारिश के जो हालात दिख रहे हैं, इसमें धान के बम्पर ऊपज होने की संभावना है।

लातेहार जिला मुख्यालय से करीब 100 किलोमीटर दक्षिण में अवस्थित महुआडाड़ प्रखण्ड, रेगाईं पंचायत का जोरी गाँव की आर्थिक सामाजिक समृद्धि की यह यात्रा कम जोखिम भरा नहीं है। पहाड़ की तराई में बसा यह गाँव दो तरफ से पहाड़ियों से घिरा है। पहाड़ियाँ कई दफा ग्रामीणों के दैनिक जीवन को पहाड़ बना देती है। लेकिन पारंपरिक ज्ञान, आपसी सूझ-बूझ और दूरदर्शिता से ग्रामीण अपने सपनों को आकार देने लगें तो यही पहाड़ ग्रामीण जीवन के लिए वरदान साबित होने लगते हैं। जोरी गाँव के तीन पीढ़ी के बुजुर्गों ने अपने भावी पीढ़ियों के लिए ऐसे ही सुनहरे सपने बुने थे, जिसे वर्त्तमान पीढ़ी उपभोग कर रही है। ग्राम प्रधान छलकू नागेसिया की माने तो वर्त्तमान पीढ़ी भी अपने पूर्वजों के आदर्शों को अपनाते हुए उनके बताए मार्ग पर चलने का भरसक प्रयास कर रहे हैं।

जोरी गाँव की आर्थिक समृद्धि की असल कहानी गाँव से करीब 1 किलोमीटर पश्चिम में लेटो नदी में घघरी नामक स्थान में पहाड़ी नदी से नहर निर्माण से शुरू होती है। छलकु नगेसिया बताते हैं कि करीब तीन पीढ़ी पूर्व उनके पूर्वजों क्रमश: सुखन बूढ़ा, भुखला बूढ़ा, चुटिया बूढ़ा, पौलूस मास्टर सरीखे लोगों ने "मिशन" द्वारा संचालित काम के बदले अनाज योजना से हर्रा बांध और हगरी बाँध का निर्माण किया था। आज ये दोनों बाँध धान खेत में तब्दील हो चुके हैं। उन दिनों बुजुर्गों ने अपने खुद के ज्ञान से उसी घघरी के पास बड़े पत्थरों से लेटो नदी के पानी को डायवर्ट कर पहले हर्रा बांध तक पहुंचाया फिर बाद में हगरी बांध में पानी को संग्रहित किया करते थे। बरसात के दिनों में गाँव के सभी पानी वाले जगहों में मछलियाँ भरपूर मिला करते थे। साथ में जंगलों से नाना प्रकार के कन्द-मूल और फल फूल भी। दोनों बाँधों के अगल-बगल, लेटो नदी और गाँव के आस-पास बुजुर्गों ने धान के खेतों का निर्माण अपने मेहनत से आजीवन करते रहे।

समय बीतने के साथ पूर्वजों द्वारा निर्मित पारंपरिक सिंचाई नहर मरम्मत के अभाव में जहां - तहाँ विखंडित हो गए थे। इसी बीच 2020 में वैश्विक महामारी संकट कोविड 19 का कहर आया। बाहर शहरों व स्थानीय बाजारों की सारी आर्थिक गतिविधियाँ ठप्प हो गई। तभी ग्रामीणों ने स्थानीय सामाजिक कार्यकर्त्ताओं के सहयोग से मनरेगा योजना को विस्तार से जाना समझा। ग्राम सभा में जरूरी सार्वजनिक योजनाओं को प्राथमिकता के आधार पर प्रस्ताव पारित किए। जिसमें घाघरी से काठो पुल तक नहर जीर्णोंद्धार को ग्राम सभा ने पहले नंबर पर जगह दी। उक्त योजना को दो पार्ट में प्रशासनिक स्वीकृति भी दिलाने में ग्रामीणों ने सफलता हासिल की। फिर ग्रामीणों ने मनरेगा में नियम संगत तरीके से काम का मांग किया। ग्रामीणों को इसी नहर जीर्णोंद्धार में ग्राम पंचायत द्वारा काम आवंटित की गई। प्रारंभ में महुआडाड़ के राजनीतिक कार्यकर्त्ताओं ने इन योजनाओं में ठेकेदारी करने की कोशिश की। परंतु आदिवासियों के तीव्र विरोध के कारण उनको पीछे हटने को मजबूर होना पड़ा। गाँव की महिला मनरेगा मेठ बसंती देवी के कुशल नेतृत्व में मजदूरों ने ईमानदारी से कार्य किया, उनको निर्धारित अवधि में मजदूरी भी मिली और आज परिणाम ये है कि नहर जीर्णोंद्धार का काम पूरा भी हो गया। संयोगवश 2022 में घाघरी में एक अन्य सरकारी योजना से पक्का चेकडेम का निर्माण भी किया जा चुका है। यही वजह है कि आज जोरी गाँव का लगभग 500 एकड़ से अधिक खेतों में नहर का पानी 24 घंटे सुलभ है।

ग्रामीणों के संघर्ष और सफलता की कहानी यहीं समाप्त नहीं हो जाती है। जोरी ग्राम सभा को वन अधिकार कानून 2006 के तहत 252.04 एकड़ का पट्टा भी जनजातीय कार्य मंत्रालय, भारत सरकार निर्गत किया जा चुका है। हालांकि जोरी एवं मेढ़ारी ग्राम सभा के लोग 5 साल पूर्व से ही अपने वन संसाधनों का बेहत्तर प्रबंधन कार्य करने लगे हैं। जहाँ आज बाँस, महुआ, घर बनाने हेतु कंडी, नाना प्रकार के औषधीय जड़ी - बूटी, फल - फूल पर्याप्त मात्रा में मौजूद हैं, जिसका ग्रामीण ग्राम सभा द्वारा तय नियमानुसार उपयोग करते हैं। ग्राम प्रधान स्वयं स्थानीय जड़ी बूटियों से गंभीर बीमारियों यथा पत्थरी, पागलपन, मिरगी, लाँघन का अचूक ईलाज करते हैं। उनके शब्दों में गंभीर रूप से टूटे हड्डियों का ईलाज सिर्फ 3 खुराक से ठीक कर देते हैं। वे सांप और बिच्छू द्वारा डसे विष को भी ईलाज से ठीक करते हैं। ग्रामीण सरकार से ये अपेक्षा करते हैं कि इस उपयोगी नहर का कई जगहों पर मिट्टी कटाव से टूट जाने की संभावना है। ऐसे जगहों का विस्तृत आकलन कर प्राक्कलन तैयार करते हुए नहर को जरूरी स्थानों पर पक्कीकरण कर दे।

दौरे की तिथि :- 18/8/2024
दौरे में शामिल सदस्यगण (1) जेम्स हेरेंज, सामाजिक कार्यकर्ता
        (2) अफसाना खातून, सामाजिक कार्यकर्ता
(3) जितेंद्र सिंह, सामाजिक कार्यकर्ता
(4) प्रशान्ता किण्डो, सामाजिक कार्यकर्ता
(5) विनय भूषण, सामाजिक कार्यकर्ता