त्रेता युग में निर्मित, विष्णु मंदिर से सूर्य मंदिर में कैसे तब्दील हुआ बिहार के मदनपुर का 'उमगा सूर्य मंदिर'

How the 'Umga Sun Temple' of Madanpur, Bihar was transformed from a Vishnu temple to a Sun temple, built in Treta Yuga

त्रेता युग में निर्मित, विष्णु मंदिर से सूर्य मंदिर में कैसे तब्दील हुआ बिहार के मदनपुर का 'उमगा सूर्य मंदिर'

-- अरूण कुमार सिंह
-- 1 अगस्त 2021

बिहार के औरंगाबाद जिले के मदनपुर के पास अवस्थित उमगा या उमंग गढ़ का भ्रमण आपको कदम कदम पर चौंका देगा । वैसे तो, मैं इस मंदिर और पर्वत पर पर बचपन में कई बार गया हूं । लेकिन तब 'समझने' की समझ विकसित नहीं थी । इस बार अल्प समय के लिए, अचानक ही मंदिर का रूख कर लिया तो‌ इतिहास, पुराण और आख्यान की बहुत सारी कहानियां फिर से ताजा हो गयीं ।

इस इलाके में एक प्रचलित किवदंती यह है कि देवों के महान शिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने एक ही रात में तीन अद्भुत मंदिरों का निर्माण किया था- देव, देवकुंड और उमगा सूर्य मंदिर का । कहते हैं कि उमगा मंदिर के उपर कलश बैठाया जाता, इसके पूर्व ही चांदनी रात का सवेरा हो गया था और भगवान विश्वकर्मा वह कार्य अधूरा छोड़कर चले गये थे ।

त्रेता युग का श्रीहरि विष्णु मंदिर कैसे बना सूर्य मंदिर ?

इतिहासकारों और पुरातत्ववेत्ताओं का कहना है कि वर्तमान में सूर्य मंदिर के रूप में विख्यात उमगा का यह मंदिर कभी श्रीहरि विष्णु मंदिर था । मंदिर का निर्माण त्रेता युग में किया गया था। मंदिर के शिलालेख बताते हैं कि पहले यह श्री जगन्नाथ मंदिर था।‌ मुगलों का अत्याचार जब चरम पर था और पूरे भारत में लाखों मंदिरों को ध्वस्त किया जा रहा था, उसी काल में यह मंदिर भी मुगलों के क्रूरता और अत्याचार का शिकार हुआ । तब पूरा उमगा पहाड़ दर्जनों मंदिरों से भरा हुआ था । मुगलों ने इस पर्वत पर कई विराजमान मंदिरों को नेस्तनाबूद कर दिया, जिनके अवशेष आज भी मौजूद हैं ।

तत्पश्चात सन् 1496 ई० में सूर्यवंशी राजा भेरवेन्द्र ने मंदिर के गर्भगृह में पुन: बलराम और सुभद्रा की प्रतिमा स्थापित की । बाद में क्रूर मुगल शासक औरंगजेब ने उक्त प्रतिमा को भी ध्वस्त करवा दिया । उस वक्त उसने मंदिर को भी तोड़ने की कोशिश की और मंदिर पर तोप दगवाये । लेकिन वह मंदिर तोड़ पाने में सफल नहीं हो सका । औरंगजेब के अंत के बाद इस मंदिर में भगवान सूर्यदेव की प्रतिमा स्थापित की गई। तब से आज तक यह मंदिर सूर्य मंदिर के रूप में विख्यात है ।

कभी मंदिरों का फैक्ट्री था यह इलाका

मदनपुर प्रखंड क्षेत्र के उमगा पहाड़ और इसके आसपास की पहाड़ी श्रृंखलाओं में दर्जनों मंदिर, या यूं कहें कि मंदिरों का पूरा एक समूह ही विद्यमान था । कहा जाता है कि यहां पर तरह तरह के मंदिरों के लिए पत्थर, उनपर नक्काशी और शिलालेख तैयार किये जाते थे जिन्हें संपूर्ण मगध साम्राज्य के कोने-कोने में मंदिर निर्माण के लिए भेजा जाता था ।

सहस्र शिवलिंग और 52 मंदिरों का था उमगा पर्वत

इस उमगा पर्वत पर 2100 शिवलिंग विद्यमान थे । यह पूरी पर्वत शृंखला 52 मंदिरों से सुशोभित थी । यहां माता उमंगेशवरी एवं सूर्य की प्रतिमा, भगवान शंकर, गणेश, गौरी शंकर, बटुक भैरव एवं नंदिनी, भैंसासुर द्वार, भूतनाथ मंदिर, कुल देवी, शिव-पार्वती मंदिर, दशभुजी गणेश मंदिर आदि कई विलुप्त मंदिरों के प्रमाण यहां आज भी मौजूद हैं ।

प्रमाण तो मुगलों के अत्याचार के भी हैं जिन्होंने क्रूरता पूर्वक इन ऐतिहासिक निशानियों को समूल नष्ट और ध्वस्त करने की अपनी तरफ से पूरी पूरी कोशिश की थी । लेकिन आज भी गरुड़ ध्वज, दूध रूपी जल,1100 टन का पर्वत देवी के शीर्ष पर विराजमान, महल का गुप्त द्वार, द्वार पर विराजमान भगवान हनुमान का गढ़ (हनुमान गढ़ी), असुर राजा महिषासुर का द्वार, भगवान पार्श्वनाथ की अद्भुत प्रतिमा, राजा दशरथ जी के निधन के बाद राजा रामचन्द्र जी, लक्ष्मण जी एवं माता सीता को श्राद्ध हेतु कार्य के लिए इस पर्वत पर आगमन के प्रतीक चिन्ह् यहां आज भी विद्यमान हैं । यह पर्वत वैदिक-ऐतिहासिक काल, महाजनपद युग, मौर्यकालीन, गुप्तकालीन और मगध साम्राज्य के उत्थान और पतन का भी गवाह रहा है ।

यह इलाका एक से बढ़ कर एक राजाओं के गढ़, राजाओं द्वारा छठ पर्व एवं पूजा अर्चना के लिए निर्मित किये गये रानी पोखर, सूर्यवंशी और चंद्रवंशी राजाओं के मिलन स्थल, जैन और बुद्ध धर्म के प्रचार प्रसार स्थल का भी गवाह रहा है ।

वायु पुराण में कीकट प्रदेश के नाम से विख्यात था उमगा

वर्णन यह भी है कि भगवान विष्णु के गया में आगमन के उपरांत वैष्णव सभ्यता के अनुसार इस भू-भाग पर कई एक मंदिरों का निर्माण भगवान विश्वकर्मा जी के द्वारा किया गया, उसमें से एक उमगा मंदिर भी शामिल है । यहां आकर आप अद्भुत शांति महसूस कर सकते हैं । हांलाकि, इस स्थान और मंदिर समूहों के इस स्थल का व्यापक प्रचार प्रसार नहीं हो सका है, यहां आकर ऐसा महसूस हुआ ।